Friday, October 29, 2021

80 મનમોહક રંગોળી બુક ડાઉનલોડ | Rangoli Book PDF




रंगोली भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा और लोक-कला है।[1] अलग अलग प्रदेशों में रंगोली के नाम और उसकी शैली में भिन्नता हो सकती है

लेकिन इसके पीछे निहित भावना और संस्कृति में पर्याप्त समानता है। इसकी यही विशेषता इसे विविधता देती है और इसके विभिन्न आयामों को भी प्रदर्शित करती है। इसे सामान्यतः त्योहार, व्रत, पूजा, उत्सव विवाह आदि शुभ अवसरों पर सूखे और प्राकृतिक रंगों से बनाया जाता है। इसमें साधारण ज्यामितिक आकार हो सकते हैं या फिर देवी देवताओं की आकृतियाँ। इनका प्रयोजन सजावट और सुमंगल है।



इन्हें प्रायः घर की महिलाएँ बनाती हैं। विभिन्न अवसरों पर बनाई जाने वाली इन पारंपरिक कलाकृतियों के विषय अवसर के अनुकूल अलग-अलग होते हैं। इसके लिए प्रयोग में लाए जाने वाले पारंपरिक रंगों में पिसा हुआ सूखा या गीला चावल, सिंदूर, रोली,हल्दी, सूखा आटा और अन्य प्राकृतिक रंगो का प्रयोग किया जाता है परन्तु अब रंगोली में रासायनिक रंगों का प्रयोग भी होने लगा है। रंगोली को द्वार की देहरी, आँगन के केन्द्र और उत्सव के लिए निश्चित स्थान के बीच में या चारों ओर बनाया जाता है। कभी-कभी इसे फूलों, लकड़ी या किसी अन्य वस्तु के बुरादे या चावल आदि अन्न से भी बनाया जाता है।Rangoli Book PDF |Best Rangoli Book PDF


रंगोली भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में सबसे प्राचीन लोक चित्रकला है। इस चित्रकला के तीन प्रमुख रूप मिलते हैं- भूमि रेखांकन, भित्ति चित्र और कागज़ तथा वस्त्रों पर चित्रांकन।[22] इसमें सबसे अधिक लोकप्रिय भूमि रेखांकन हैं, जिन्हें अल्पना या रंगोली के रूप में जाना जाता है। भित्ति चित्रों के लिए बिहार का मधुबनी और महाराष्ट्र के ठाणे जिले में वरली नामक स्थान प्रसिद्ध है। इनकी रचना शैली और रचनात्मक सामग्री रंगोली के समान ही होती है। इसमें विभिन्न अवसरों पर शुभ चिह्नों के साथ अनेक प्रकार के चित्रों से दीवारों की सजावट की जाती है। 


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तीसरे प्रकार के चित्रांकन कागज़ों अथवा कपड़ों पर होते हैं। कुमाऊँ में इसे ज्यूँति, राजस्थान में फड़ या पड़क्यें कहा जाता है। ज्यूँति में जहाँ जीवमातृकाओं और देवताओं के चित्र बने होते हैं वहीं फड़ में राजाओं और लोकदेवताओं की वंशावली चित्रित होती है। 

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